हमारे देश की दो सबसे बड़ी समस्याएँ हैं – ‘चलता है का रवैया और मेरे अकेले के करने से क्या होगा की सोच’। अगर यातायात के नियमों के सन्दर्भ में बात की जाये तो लोग सोचते हैं, थोड़ा-सा गलत-दिशा में घुस जाएँ, थोड़ी-सी लाल बत्ती पार कर ली जाये इत्यादि। पर ये सोचिये कि डॉक्टर आपको थोड़ा सा बुखार आने पर कैन्सर की थोड़ी-सी दवाई दे, तो चलेगा? हज़ारों की संख्या वाली रेल लेकर अगर रेल चालक थोड़ी-सी लापरवाही कर दे, तो चलेगा? इससे हजारों लोगों की जान जोखिम में जा सकती है, ज़रा से के चक्कर में। छोटी-छोटी बातों का बहुत गहरा असर होता है। दूसरी समस्या है – ‘मेरे अकेले के करने से क्या होगा वाली सोच’। हर अच्छे कार्य की शुरुआत जानते हैं किस चीज़ से होती हैं – ‘मुझसे’। जब तक हम स्वयम् ही नियमों का पालन नहीं करेंगे, किसी और से उसकी उम्मीद करना निरर्थक है और जब आप अपने बच्चों के साथ ड्राइव करते हैं, और आप स्वयम् ही नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हैं, तो आप अपने बच्चों के समक्ष क्या उदाहरण पेश कर रहे हैं। सोचा है कभी आपने, अक्सर बच्चे वही करते हैं, जो अपने आसपास के लोगों को, परिवारजन को करते देखते हैं।
एक अंग्रेज़ी कहावत है – Don’t learn safety by accident. सुरक्षा के महत्व को गलती होने के उपरांत ना सीखें, क्योंकि सुरक्षा का महत्व तो सदैव ही है।
निम्नलिखित पर ध्यान दें-
आश्चर्यजनक, किन्तु सत्य!!! Strange, but true!!!1. सड़क हादसों का सबसे सबसे बडा कारण 'मानवीय गलती' है।
2. रोड् सेफटी की ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार भारत ने चीन के बाद पृथ्वी पर सबसे ज्यादा हादसों का रिकॉर्ड बनाया है। देखें –
3. सरकारी आँकड़ों के अनुसार भारत में वर्ष 2011 में 4,97,686 सड़क हादसे हुए एवं 1,42,485 लोग मारे गए। अब आप वास्तविकता में हुए हादसों का अनुमान लगा सकते हैं।
4. इंडियन नेशनल क्राईम रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजाना 14 लोग / घण्टे अपनी जान सड़क हादसों में गँवा बैठते हैं।
5. भारत में अभी भी 7-8 प्रतिशत लोग ही चार पहिया वाहनों में सीट बेल्ट का इस्तेमाल करते हैं; हेलमेट पहन के गाड़ी चलाने वालों का प्रतिशत इससे भी कम है।
6. भारत में हुए कुल सड़क हादसों में 55 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा केवल 5 राज्यों का है, जिनमें महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश है।
7. सरकारी आँकड़ों के मुताबिक सड़क हादसों में 15-20 प्रतिशत कारणों के पीछे वे बच्चे थे, जिनकी आयु 0-14 वर्ष की थी और जो लायसेंसधारी भी नहीं थे।
8. हमारे देश में मान्यता है कि यातायात पुलिस-बल सिर्फ चालान बनाने के लिए होते हैं, एवं सिर्फ चालान न बनने के डर से हमारे यहाँ यातायात के थोड़े बहुत नियम मानने के लिए बाध्य हैं। वैसे आदतन लोग यातायात पुलिसकर्मी की गैर-मौजूदगी में लाल बत्ती को पार करते ही हैं। वैसे पुलिस की ऐसी छवि बनाने के लिए वे स्वयं ही जिम्मेदार हैं। क्या डॉक्टर आपको पर्ची पर दवाएँ लिख कर नहीं देता, क्या स्वयं डॉक्टर आपको दवाएँ अपने सामने ही दिलवाता है, फिर भी आप घर जाकर भी दवाएँ खाते ही हैं ना, क्योंकि वह आपकी सेहत से जुड़ा है, तो यातायात के नियम भी तो आपकी और आपकी और सड़क पर चल रहे हर एक इंसान की जिन्दगी से जुड़े हुए हैं।
9. भारत में लोग अपनी लेन का मतलब ही नहीं जानते। हमारे यहाँ वैसे ही इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है. सड़क के मुकाबले वाहनों को घनत्व ज्यादा है. ज्यादातर सड़कों की हालत भी दयनीय ही कही जा सकती है।
10. काफी सारे देशों में एक से ज्यादा बार गलती होने पर उचित सजा के साथ-साथ लायसेंस के निरस्तीकरण तक की व्यवस्था है, जबकि हमारे यहाँ तो ये आलम है कि लायसेंस तक बगैर परीक्षा या ट्रायल के ही दिये जाते हैं। जबकि बहुत से देशों में लायसेंस के लिए आवेदन देने के लिए संबंधित का लिखित व मौखिक परीक्षा, मेडिकल परीक्षा जैसे कि वह मेडिकली फिट है या नहीं, एवं गाड़ी चलाने के लिए सक्षम है। मिर्गी या हिस्टीरिया होने की दशा में चालक का लायसेंस निरस्त कर दिया जाता है। स्कूली बस चलाने के लिए उसका पूर्व रिकॉर्ड, सैक्स अपराध रिकॉर्ड इत्यादि जाँचा जाता है। ट्रक एवं इसी तरह के भारी वाहन चलाने वालों को तो और उच्च स्तर पर एडवांस स्किल भी जाँचा जाता है कि वे ऐसे भारी वाहन चलाने के काबिल भी हैं या नहीं। दूसरी ओर हमारे देश में आर.टी.ओ. भ्रष्टाचार में आकंठ में डूबी हुई एक ऐसी गैर-जिम्मेदार संस्था है, जिसकी समाज के प्रति अतीव उत्तरदायित्व है। मैंने तो आज तक कहीं पर नहीं सुना कि हमारे देश में कभी किसी का ड्रायविंग लायसेंस निरस्त हुआ हो। लायसेंस प्रणाली में 1000 प्रतिशत सुधार की गुंजाइश है। दुनिया के अधिकांश देशों में ट्राफिक नियम बेहद सख्त हैं, एवं गलत चालन के लिए जुर्माने के साथ सजा का भी प्रावधान है। अमेरिका में तो राज्य सरकारों द्वारा बाकायदा आपके चालन के डाटा संचित किए जाते हैं एवं हर वर्ष उसे केन्द्र सरकार के साथ साझा भी किए जाते हैं। लायसेंस निरस्त किए जाने की दशा में गाड़ी चालाने को अपराध की श्रेणी में रखकर कार्यवाही की जाती है। इसके विपरीत हमारे देश में इस तरह का डाटा रखने की सोच दूर-दूर तक नहीं है। स्पेन, स्वीडन, हांगकांग इत्यादि देशों में ड्रायविंग लायसेंस का नंबर उसके नागरिकता क्रमांक जैसा होता है। ये हमारे देश का दुर्भाग्य है, कि प्रशासन कभी भी नियमों का पालन करवाने के प्रति संजीदा नहीं रहा। और हमारे यहाँ आम आदमी को कानून का उपहास उड़ाने की आदत पड़ चुकी है। जरा सोचिए आप स्वयं भी कभी ना कभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते ही हैं। आप चाहेंगे कि जिस बस या ट्रेन में आप सफर कर रहे हों, उसका चालक आपराधिक रिकॉर्ड वाला हो और उसे चालन के नियम ही ठीक से पता नहीं हो या फिर नियम तोडना उसकी आदत में शुमार हो। अपने देश के कानून की तो यह स्थिति है कि सन् 2002 में सड़क पर सो रहे एक व्यक्ति को नशे की हालत में मार डालने वाला खुलेआम घूम रहा है और अपने पैसों के दम पर कानून को ठेंगा दिखा रहा है। कानून भले ही उसे अब तक सजा ना दे पाया हो, पर क्या समाज उसे सजा नहीं दे सकता। क्यों लोग उसकी फिल्में देखते हैं और सर आँखों पर बैठाते हैं। क्या हमारे देश की सारी संबेदनाएँ मर चुकी हैं।
11. अनियंत्रित गति में गाड़ी चलाते हुए हादसे होना हमारे यहाँ आम बात है। गति को मापने और उसके लिए आरोप साबित करने के लिए हमारे देश के कई बडे शहरों में व्यवस्था ही नहीं है। बहुत से देशों में गति को मापने के लिए राडार डिटेक्टर का प्रयोग किया जाता है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें –
http://en.wikipedia.org/wiki/Radar_detector